सैनिक

चल पड़े प्रवाह में, मचल पड़े है चाह में,
जिंदगी में मौज में, है बंदगी की राह में।
दिलो में आज जिद जगी, जो आज है वो फिर नही,
वो मर मिटे, वो जल कटे, पर नहीं पीछे हटे।
आज मै उस जमीं, उस आसमाँ से बोलता,
जो मन में है जागे वो सारे सवाल खोलता।
जो जल गया है उस जमी पे। जान दे गया है वो,
वो बोलता था कि ये माँ है मेरी उस जमी में सो गया है वो।
आज में भी उसकी वीरता पे मन टटोलता।
उस वतन के वीर की शान में कुछ पंक्तिया बोलता।
कि ऐ वीर वतन पर तेरी वीरता खाली न जाएगी,
तूने जो किया उसकी महक वतन में छाएगी,
तेरी छांव में ये वतन शोहरत पायेगा,
हरकदम पर ये नए नए परचम लहराएगा।।

अंतिम दो पंक्तियाँ सैनिक के नाम -

कि जिंदगी जब वतन की शान होती है,
लाख वर्दियां भी पहन लू, पर कफन में तिरंगे की चादर ही पहचान होती है।

जय हिन्द

(प्रस्तुतकर्ता - नीतेश नरवरिया)
By: Neetesh Narvaria

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